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मंदिरों का शहर पुरी के प्रत्येक रास्ते से आध्यात्मिकता और दिव्यता की गूंज पैदा होती है। यह हिंदुओं के लिए एक बहुत ही लोकप्रिय तीर्थ स्थान है। यह शहर ओडिशा राज्य में बंगाल की खाड़ी की लंबी और ऐतिहासिक तटरेखा के किनारे फैला हुआ है। भगवान जगन्नाथ मंदिर में पूजा करने के लिए आने वाले भक्तों के भीड़ के साथ साथ, पुरी दुनिया भर में, अपने आराध्य देव से जुड़े महोत्सवों के लिए भी जाना जाता है। जब शहर का एक हिस्सा, भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा के वार्षिक उत्सव को मनाने में व्यस्त रहता है जिसमें लाखों पैदल यात्री भाग लेते हैं, इसका समुद्र तटों और झीलों से पटा दूसरा बाहरी भाग, सापेक्षिक शांत और नीरवता से ढका रहता है, और प्रकृति-प्रेमियों का केंद्र बन जाता है।
पुरी का रेत तट देश के कुछ बेहतरीन रेत तटों में से एक है, जो न केवल सूर्योदय और सूर्यास्त का शानदार दृश्यों को प्रस्तुत करता है, बल्कि यह कई अन्य साहसिक गतिविधियों, जैसे वाटर स्पोर्ट/जल क्रीड़ा और वन्यजीव के अनुभवों, का भी आनंद देता है। भव्य मंदिरों के प्रचुरता के कारण यह शहर, वास्तुकला और इतिहास प्रेमियों के लिए अत्यंत ही दर्शनीय है।
स्थानीय मछुआरा समाज, पुरी के एक अनूठे आकर्षण हैं, जिनके हाथों में पाक कला (गैस्ट्रोनॉमिक) की करामात होती है जिससे वे इस शहर को सामुद्रिक व्यंजनों और संस्कृति का स्वर्ग बना देते हैं! भले ही पुरी मे, साल भर पर्यटकों का तांता लगा रहता हो, पर जुलाई-अगस्त के महीनों के आसपास, अपने नौ दिवसीय रथ यात्रा उत्सव के समय यह शहर अति विशिष्ट हो जाता है, जब शानदार तरीके से सजाए तीन रथ, भगवान जगन्नाथ, उनकी बहन सुभद्रा और भाई बलभद्र को लेकर यात्रा पर निकलते हैं।
कहा जाता है कि इस शहर को 9 वीं शताब्दी ईसवी में महान संत आदी शंकराचार्य ने पवित्र किया था, जब उन्होनें यहां एक मठ की स्थापना की थी, जिसे आज गोबर्धन मठ कहा जाता है। मठ में कई अन्य संतों और दार्शनिकों के स्थल भी हैं, जैसे रामानुज, माराहरितीर्थ, नानक, कबीर, चैतन्य और बल्लव भट्ट आदि। सदियों से, पुरी देवत्व का केंद्र रहा है, और ऐतिहासिक दस्तावेज यह साबित करते हैं कि 11 वीं शताब्दी के बाद, सोमवमिस के समय से, इस क्षेत्र के सभी शासक राजवंशों ने पुरी के मंदिरों और आश्रमों को प्रश्रय और उदार दान दिये।
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