भुवनेश्वर से लगभग 52 किमी दूरी पर स्थित, रघुराजपुर एक विरासतीय शिल्प ग्राम है जो पट्टचित्र कलाकृतियों के लिए प्रसिद्ध है। कला का यह रूप 5 वीं शताब्दी ईसा पूर्व का है। इसमें पौराणिक विषयों पर आधारिेत रंगीन पैटर्न, कपड़े के एक टुकड़े पर चित्रित किए जाते हैं। यहां पर्यटक तुसर पेंटिंग, ताड़ के पत्ते की नक्काशी, मिट्टी के बर्तन, कागज़ के बने सामान, लकड़ी और पत्थर पर नक्काशी की गई मुखौटे, और गाय के गोबर के, और लकड़ी के बने खिलौने भी खरीद सकते हैं। संभवतः यह भारत का एकमात्र स्थान है जहां विभिन्न कला के कलाकारों की इतना बड़ा समुदाय रहता है। रघुराजपुर को गोटीपुआ नृत्य मंडलियों के लिए भी जाना जाता है, जो नृत्य लोकप्रिय और विश्व स्तर पर सराहे जाने वाली ओडिसी शास्त्रीय नृत्य की जन्मदात्री हैं। ओडिसी शास्त्रीय नृत्य के प्रणेता, गुरु केलुचरण महापात्र का जन्म भी इसी गाँव में हुआ था।

रघुराजपुर को, ओडिशा राज्य के पहले विरासतीय ग्राम के रूप में, और एक शिल्प ग्राम के रूप में विकसित होने का गौरव प्राप्त है। इस पहल के बाद, गांव में एक विवेचना केंद्र स्थापित हुआ, जिसमें कलाकारों के घरों की कलाकृतियों के साथ-साथ एक रेस्ट हाउस भी है।कहा जाता है कि पट्टचित्र कला को पुनर्जीवित, एक अमेरिकी महिला हेलेना ज़िअली ने, सन् 1940 के दशक में किया। उसने कई पट्टचित्र प्रदर्शनियों का आयोजन अमेरिका में किया और इस चित्रकला के वहा़ं के प्रेमियों को, इस गांव में आमंत्रित किया। पट्टाचित्र कला, काफी हद तक उनके प्रयासों के कारण, एक कला के रूप में अंतर्राष्ट्रीय प्रशंसा अर्जित कर पाया है।रघुराजपुर भी एकमात्र ऐसी जगह है जहां पाटा मिल सकता है। यह वह पारंपरिक सजावट हैं जो भगवान जगन्नाथ के सिंहासन के नीचे और रथ यात्रा उत्सव के दौरान तीन रथों पर इस्तेमाल की जाती है, जो रथ यात्रा पुरी शहर में हर साल आयोजित की जाती हैं। यह आकर्षक शहर रघुराजपुर, नारियल, ताड़, आम और कटहल के पेड़ों के झुरमुटों के बीच स्थित है। गांव में दो मुख्य सड़कें हैं और करीब 120 घर हैं, जो भित्ति चित्रों से सजे रहते हैं।

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